सफर - मौत से मौत तक….(ep-41)
राजू और मन्वी के जाते ही इशानी छत से नीचे उतरी और समीर से कहने लगी
"समीर…. बाहर रिक्शे को क्यो छोड़ गए है वो लोग, कबाड़खाना है क्या यहाँ" इशानी ने समीर से कहा।
समीर बहुत ही शांत स्वर में बोला- "इशानी! पापा का रिक्शा है वो कोई कबाड़ नही है"
"अब तो कबाड़ ही है ना….कौन चलाएगा तुम चलाओगे क्या, और बाहर अच्छा थोड़ी लगेगा वो….आपके ऑफिस के लोग, वकील लोग और अगर कोई जज लोग आ गए तो क्या सोचेंगे" इशानी बोली।
"इसमे सोचने ना सोचने जैसी क्या बात है" समीर बोला।
"मुझे नही जंचा, घर मे कार खड़ी है एक्टिवा भी है, इतना बड़ा घर है, बाहर वकील के नाम का टैग और अंदर रिक्शा….कब समझोगे तुम अपने स्टेंडर्ड को, अब तुम पुराने वालें समीर नही हो " इशानी बोली।
"तुम नही जानती इसे बेचने के पीछे पापा से कितना झगड़ा हुआ था मेरा" समीर बोला।
"वो तो थे ही झगड़े की जड़…." इशानी बड़बड़ाई, जोर से नही बोली क्योकि और भी लोग थे वहाँ।
"क्या बोल रही हो…." समीर बोला।
"मैं कुछ नही कह रही बस, आपकी मर्जी जो करना है करो, मेरी बात मानते ही कब हो" इशानी बोली।
स्नेहा भी सुन रही थी जिसे समीर ने माँ का दर्जा दिया था
"अरे बेटा, क्या गलत बोल रही है वो, जिस चीज का इस्तेमाल ही नही करना है उसे घर मे रखकर क्या फायदा।" स्नेहा ने कहा।
"मम्मी आपकी बात बिल्कुल ठीक है, लेकिन कोई खरीददार मिलेगा तो बेच देंगे ना,अभी इसी वक्त कौन आएगा लेने" समीर बोला।
"उसकी टेंशन तुम मत लो, अगर तुम्हारी मर्जी शामिल होगी तो शाम तक बिकवा दूँगी, वैसे भी कबाड़ी वाला ही ले जायेगा क्योकि आज के दौर मे उसे चलाएगा ही कौन" इशानी ने कहा।
समीर ने हाथ जोड़ते हुए कहा- "कर लो जो करना है, बस झगड़ा मत करो"
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शाम को रिक्शा बेच दिया गया, लोहे लकड़ी के भाव मे नंदू के करोड़ो का रिक्शा बिक गया। जब रिक्शा बेचा जा रहा था तो नंदू रोने लगा था।
"आप भी अंकल, जब रोने का टाइम होता है तब नही रोते, बड़ी बड़ी बातो में हंसकर सहन कर लेते हो सब, एयर इन छोटी छोटी बातों में रोने लगते हो" यमराज ने कहा।
"ये कोई छोटी बात नही है, मेरे लिए मेरा रिक्शा ही सब था, समीर कैसे भूल सकता है कि इसके वकील बनने की वजह था वो रिक्शा, इसे पालने पोषने में जितना हाथ मेरा है उतना ही इस रिक्शे का भी था, इसकी किम्मत क्यो नही समझ आयी उसे" नंदू अंकल बोला।
"उसे जब आपकी किम्मत नही समझ आयी तो रिक्शे की कैसे आएगी, वो तो ये भूल गया था कि आपने उसे पालपोषकर वकील बनाया है, फिर रिक्शे का किऐसे याद रखता" यमराज बोला।
"ह्म्म्म करेक्ट बोले हो तुम" नंदू ने कहते हुए अपने आंसू पोछे।
*****
दूसरी तरफ मन्वी पापा से नंदू की हिस्ट्री पूछ रही थी कि उन्होंने कैसे कैसे दिन गुजारे और नंदू की सारी कहानी जानने के बाद कहा
"आप ही सोचिए पापा…. नंदू अंकल इतनी टेंशनो के बावजूद कभी ऐसी हरकत नही किये, फिर अचानक फांसी क्यो लगा ली, क्या आपको यकीन है कि नंदू अंकल ऐसा कर सकते है" मन्वी ने कहा।
"नही! मुझे नही लगता नंदू ऐसा करने की सोच भी सकता था, लेकिन शायद कोई ज्यादा ही मुश्किल आ खड़ी हुई होगी उसके सामने" राजू बोला।
"ऐसा नही हो सकता पापा, परिवार खुद पल रहा था, रहने, खाने-पीने की कोई टेंशन नही थी, बेटा अच्छा कमा रहा था, घर मे बहु थी जो घर संभालती होगी, फिर भी कोई टेंशन कहाँ से आएगी" मन्वी बोली।
"बुढापा टेंशन का घर है बेटा….जितने मर्जी पैसे हो जाये, हर टेंशन का इलाज पैसा होना नही है, अब मुझे ही देख तेरी शादी की कितनी टेंशन है,जबकि तू अपने पैरों पर खड़ी भी हो गयी है, तेरे लिए लड़को की कोई कमी भी नही होगी। शादी में पैसो की कमी भी नही होगी, फिर भी टेंशन है तो है" राजू बोला।
"पापा मैं जानती हूँ नंदू अंकल टेंशन में होंगे, लेकिन ये खुद आयी टेंशन नही होगी, जरूर उन्हें कोई टेंशन जानबूझकर दिया गया है…."मन्वी ने कहा।
"उन्हें क्यो कोई जानबूझकर टेंशन देगा" राजू बोल पड़ा।
"कुछ तो गड़बड़ है पापा! अच्छा………! हमने अब कब जाना है उनके घर " गौरी ने पूछा।
"तेरहवीं पर बुलाया है समीर ने, उस दिन लास्ट काम होता है ना, इंसान का" राजू बोला।
"चाय और खाना पैक कराके ले जाना पड़ेगा फिर, वो लोग तो खिलाने पिलाने से रहे, रिश्ता तो उनसे नंदू अंकल तक था हमारा" मन्वी बोली।
मन्वी को बहुत बेइज्जती महसूस हुई थी आज, जहां इशानी ने खुद उठकर बिना पूछे चाय बनाकर लाना चाहिए था लेकिन उसने तो कहकर भी नही बनाई, अपनी मस्ती में खोई थी। देख सब रही थी, बस नाटक कर रही थी।
*****
कुछ दिन तक सब लोग अपने अपने मे मग्न हो गए थे,
समीर अपने रोज के सांसारिक और धार्मिक कर्मो से अपने पापा की आत्मा को शांति देने का काम कर रहा था। इशानी भी घर में ही रहती तुलसी और सरला को मन ही मन कोसती रहती थी, कहती थी कि अपने भाई पर गए है, बहु तो सबको निक्कमी ही लगती है। इनके लिए कितना मर्जी कर लो इनको चैन नही मिलेगा, और दूसरी तरफ इशानी कोई नई नौकरानी ढूंढ रही थी क्योकि आजकल सरला और तुलसी के सामने उसे थोड़ा बहुत काम करना पड़ रहा था। इशानी का दुख स्नेहा से देखा नही जा रहा था कि उसकी बेटी सबके चाय के बर्तन खुद उठाकर किचन में रख रही थी, भले ही धोने के लिए तुलसी बुआ धोती थी, इशानी ने साफ मना कर दिया था धोने से, और इशानी धोती भी तो स्नेहा उसे डांटते हुए समीर को बात सुनाने लगती की तू इस घर की बहू है नौकरानी नही है।
दूसरी तरफ पुष्पा भी अपने बच्चों के साथ घर घर घूम रही थी काम मांगने के लिए, कभी कहाँ तो कभी कहा। उसके मकानमालिक को उसने यह कह दिया था कि उसके मालिक ने फांसी लगा ली तो वहां से काम छूट गया है, तो इतना सुनते ही मकान मालिक ने भी कमरा खाली करवा दिया, क्योकि मकान मालिक खुद ही गरीब था, बस अपना मकान था, दो-तीन कमरे किराए पर दिए थे, उनसे किराया लेकर ही गुजारा चलता था, ऐसे में वो किराया ना देती तो उसका खुद का गुजारा ठप्प होने लगता, कुछ दिन रहने भी देता अगर नया किराएदार ना मिला होता तो, नये किरायेदार
का मिलना भी पुष्पाकली के लिए गलत ही हुआ।
पुष्पाकली सोचने लगी कि काश की इशानी के बदले बड़े मालिक से ये बात कह दी होती, वो बिना कहे मदद कर सकते है तो कहकर भी जरूर करते,अगर उनसे मदद मांगी होती तो ना इशानी के चक्कर मे पड़ती ना ही इस घटिया काम मे उसका साथ देती……ना मालिक फांसी लगाते, मुझे लगा था कि मालिक कुछ करते-धरते तो है नही, आजकल शराब पीने के लिए भी पैसे नही थे तो मुझे देने के लिए कहाँ से आएंगे, इसलिये मैं इशानी के पास मदद के लिए गयी, लेकिन किसी ने सच ही कहा है कि इंसान के पास किसी की मदद करने के लिए ज्यादा पैसे नही बल्कि बड़ा दिल होना चाहिए, जो कि बड़े मालिक का था, इशानी के पास पैसे थे लेकिन वो पैसे दे नही सकी बिना अपना मतलब पूरा किये, क्योकि उस लायक दिल नही था उसके पास। काश की जब पहली दफा इशानी ने पैसे देने से मना कर दिया था उसके बाद दोबारा लेती ना उसके पैसे , लेकिन मेरे लिए तो मेरी औलाद ज्यादा जरूरी थी, अगर ये औलाद भी कल को इशानी जैसी बहु ले आया तो मेरे साथ भी यही होगा,
पुष्पाकली सड़क की धूप में अपना बोरिया बिस्तरा और तीन बच्चों को लेकर चल रही थी।
दूसरी तरफ मन्वी की जिंदगी में अलग ही तूफान आया था, उससे रिलेटेट कोई परेशानी नही थी, उसकी जिंदगी मस्त चल रही थी। दिन भर मासूम और शैतान बच्चो के बीच हँसी मजाक और उनको अच्छी शिक्षा देना और शाम को घर आकर यूट्यूब पर देखकर नई नई डिश बनाना उसका रोज का काम था और शौक भी, सुबह सुबह भजन कीर्तन को मध्यम आवाज में लगाकर मम्मी पापा के कमरे में स्पीकर रख आती और खुद कान में इयरफोन लगाकर पार्क में दौड़ने चली जाती थी। बिल्कुल खुशी थी जिंदगी में, छोय मोटे परेशानियों को वो मुंह नही लगाती थी। लेकिन आज एक ऐसी परेशानी थी जो उसकी बिल्कुल नही थी लेकिन उसे उसने सिर पर ही चढ़ा लिया था।
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कहानी जारी है
कहानी मैं तीन तरह का परिवार है
★एक समीर और इशानी का, प्रदूषित वातारण का परिवार जहाँ लाख कोशिश करके भी खुशिया नही आ पा रही थी, क्योकि अपनो से बड़ो का सम्मान ना किया जाए तो खुशिया भला कैसे आएंगी।
★ दूसरा दर दर की ठोकर खा रही पुष्पा की, जिसकी अपनी गलती और लालच का परिणाम उसे मिला था।
★और तीसरी मन्वी की……अपनी लाइफ सेट थी,लेकिन दुसरो की तकलीफें नही देख पाने की वजह से वो परेशान थी।
देखते है कहानी आगे क्या मोड़ लेती है, अब तक कि कहानी कैसी लगी बताना, क्योकि अगले भाग से नंदू और यमराज वर्तमान में कदम रखने जा रहे है। और अब होगा धमाका क्योकि नंदू कुछ कुछ बाते बदल सकता है, वर्तमान में अगर वो चाहे तो उठा पटकी भी कर सकता है, जैसा अक्सर हॉरर मूवी में होता है। लेकिन ऐसा ज्यादा आतंक मेरी कहानी नही मचाएगी लेकिन अपनी मौजूदगी का एहसास नंदू जरूर दिलाएगा।
Ammar khan
30-Nov-2021 11:03 AM
Very good story
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Khan sss
29-Nov-2021 07:42 PM
Good
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Swati chourasia
09-Oct-2021 08:52 PM
Very nice
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